Wednesday, December 30, 2009

नाली साफ करा दो, लोग गिरने वाले हैंःःःःःःःःःः

पियक्कड़ों की हर नुक्कड़ में लगेंगी महफिलें
लड़खड़ाते कदमों का नाली ही मुकाम होगा।।


नया साल शुरू होने वाला है। उसका सुरूर छाने लगा है। लोगों ने रात का कोटा एक रात पहले ही रख लिया है। पुलिस कहती है दस बजे के बाद पियोगे तो पेलेंगे। हम कहते हैं रोक के दिखाओ। साले हम तो जरूर पिएंगे। कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
अबे खुशी तो असली हम ही मनाएंगे। तुम, पालक खाने वालों क्या जानो नए साल की खुशी। पुराने साल भी आलू खाई थी और नए साल में भी आलू ही खाओगे। कभी पनीर का टुकड़ा मुंह में गिर गया तो खुशी का लम्हा मान लिया। अबे हमसे सीखो भले ही भीख मांगनी पड़े, लेकिन चिली पनीर से नीचे समझौता नहीं करते हैं। तुम साले क्या जानो मुर्गे और लेग पीस का जायका। मछली, झोर और रायता। अण्डा करी और मक्खन का तड़का। आलू खाने वाले क्या समझेंगे इसका मर्म। ऐसों को तो भगवान ने भी नहीं छोड़ा इसीलिये तो यमराज रूपी महंगाई को इनके पीछे छोड़ दिया। अब बेटा दाल खा के दिखाओ। हम भी देखें। थाली में कितनी सब्जी ले रहे हो जरा बताओ। विटामिन की कमी हो रही है। आयरन पूरा नहीं मिल रहा है। हड्डियां आवाज करने लगी हैं। जरा सी हवा चली नहीं कि नजला हो गया। अब सर्दी तीन दिन से पहले थोड़े ही जाएगी। तब तक तो उसे परिवार में बांट दोगे क्योंकि कसम खाई है कि रूमाल मुंह में नहीं रखोगे।
पुराना साल कई वादों, इरादों में ही बीत गया। अब बेटा नए साल में क्या करना है। पापा कसम सच बता रहे हैं सुरीली का गाना तो नहीं सुनेंगे। कुछ कमाल ही करेंगे। अबे कहने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना भी पड़ेगा। वरना नया साल भी निकल जाएगा और पता भी नहीं चल पाएगा। और बेटा सच तो ये ही है कि अभी पालक खा लो वरना ’नशीला पानी’ लीवर खराब कर देगा और इसी पालक, मूंग से ही जीवन जीना पड़ेगा। तब सालों अफसोस करोगे कि ’पानी’ क्यों पिया, पालक ही पी लेते। चलो, समझो तो भला नहीं तो रामभला। मैं भी कोशिश ही कर सकता हूं। तुम्हारे ही शब्दों में प्रयास किया है। नहीं तो कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।

नया साल सभी के लिए मंगल होःःःःःःःःःःःःःः

हार्दिक शुभकामनाएंःःःःःःःःःःःःःःः

-ज्ञानेन्द्र

Monday, December 7, 2009

कुंवर ने बुलंद किया सियासत का झण्डा

अलीगढ़। अस्सलाम वालेअकुम... जैसे ही एएमयू के कैनेडी हाॅल में राहुल आए, उनके मुंह से निकलने वाले यह पहले शब्द थे। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पूरी तैयारी के साथ अलीगढ़ व एटा आए और पूरे उत्साह के साथ लोगों से रूबरू हुए। मीडिया से दूरी बनाते हुए सोची समझी रणनीति के तहत राहुल 2012 के चुनावों की प्रारंभिक तैयारी कर गए। वे यूथ कांग्रेस के सदस्यों के दिमाग की चाभी अभी से टाइट कर गए कि टिकट या पद लेना हो तो जमीनी स्तर पर काम करें, तभी उनकी दावेदारी के बारे में सोचा जाएगा। वह यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपनी रणनीति समझाकर चले गए।
राहुल का अलीगढ़ व एटा दौरा सियासी लोगों खलबली मचा गया। लिब्रहान कमेटी की रिपोेर्ट संसद में पेश हो चुकी है। छह दिसंबर को बाबरी एक्शन कमेटी के लोग विवादित ढांचा विध्वंस की बरसी मनाते हैं। वहीं सात दिसंबर से लिब्रहान की रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होनी थी। ऐसे में मुस्लिम नेताओं को मरहम और मुस्लिम वोटों में संेध लगाने के लिए भी राहुल ने एएमयू को चुना। शायद इसीलिए मीडिया को भी दूर ही रखा गया। उन्होंने कार्यकर्ताओं को अभी से जुट जाने और जमीनी स्तर से काम करने की सीख दी। राहुल उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपनी तैयारी की शुरुआत कर दी है। बता दें कि कल्याण सिंह एटा लोकसभा सीट से सांसद हैं और बाबरी विध्वंस के आरोपी भी हैं। इसीलिए ब्रज क्षेत्र में अलीगढ़ के बाद अन्य शहरों को न चुनकर एटा को ही चुना गया। राहुल का यह दौरा तो खत्म हो गया, लेकिन सियासत की हवा में गरमी बढ़ा गया। राहुल के दौरे में साफ संदेश था कि अब यूपी की बारी है।

-ज्ञानेन्द्र

Monday, September 14, 2009

सोच बदलें, हिन्दी का कल्याण होगा






हिन्दी को लेकर पद्म भूषण और पद्मश्री गोपालदास नीरज जी के दिल की व्यथा

हिन्दी भारत मां की बिन्दी
जन-गण-मन कल्याणी है
ये भाषा भर नहीं
भारतीय की आंखों का पानी है।

पद्म भूषण और पद्मश्री गोपालदास नीरज जी के मुंह से अचानक ही ये शब्द निकल पड़े। उन्होंने पीड़ा जताते हुए प्रश्न किया कि हिन्दी दिवस पर ही हिन्दी को क्यों पूजा जाता है? हिन्दी को हम मातृभाषा कहते हैं, लेकिन कुर्सी पर बैठे अफसर सारा काम अंगे्रजी में ही करना पसंद करते हैं। सिर्फ हिन्दी पखवाड़ा मनाकर ही इतिश्री कर ली जाती है। उन्होंने बाॅलीवुड फिल्मों को हिन्दी के विस्तार के लिए अहम बताया और इसका उदाहरण ‘जय हो‘ गीत से दिया जो विश्वभर में चर्चित है।
हिन्दी की महत्ता और विकास न होने की मुख्य वजह वे लोगों की मानसिकता को मानते हैं। उन्होंने बताया कि उच्चवर्गी परिवारों से तुलना की होड़ में मध्यवर्गीय परिवार भाग रहे हैं। इसके पीछे सीढ़ी का काम अंग्रेजी कर रही है। इस कारण हिन्दी पिछड़ती जा रही है। हिन्दी की दुर्दशा के लिए लोगों की मानसिकता ‘सोच‘ जिम्मेदार है। जिस दिन वह बदल जाएगी, हिन्दी भी सुधर जाएगी। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि बच्चा जब पैदा होता है तो हिन्दी में ही रोता है। आ... वह उर्दू या किसी अन्य भाषा में नहीं रोता। पाक, अफगान और ईरान के बच्चे भी हिन्दी में ही रोते हैं।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिलने का मलाल आज भी टीसता है। हिन्दी कवि और साहित्यकारों की दुर्दशा भी उनकी आंखों में नजर आई। उन्होंने बताया कि हैरी पाॅटर और चेतन भगत को तो पढ़ने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ गई, लेकिन हिन्दी साहित्य से लोग दूरी बनाए हुए हैं। इस कारण साहित्यकारों और कवियों की स्थिति हमेशा दयनीय ही रही। यदि एक व्यक्ति महीने में भी 100 रुपये हिन्दी पुस्तकों पर खर्च करे तो भी हिन्दी कवियों और साहित्यकारों को गरीबी नहीं झेलनी पड़ेगी। उन्होंने बताया कि वे अभी तक कवि सम्मेलन के मंचों पर पाठ करते हैं और तीन अक्टूबर को कवि सम्मेलन में भाग लेने देवरिया जा रहे हैं। स्वास्थ्य गड़बड़ होने के बावजूद इस उम्र में भी संघर्ष पर वह बोले कि सेहत से बड़ा पेट है।
अंत में वे बोल ही पड़े....
अपनी भाषा के बिना राष्ट्र न बनता राष्ट्र
रहे वहां सौराष्ट्र या बसे वहां महाराष्ट्र।।

Saturday, June 20, 2009

पिता दिवस पर मेरा समर्पण

मेरे पिता जी को समर्पित
वो जो हैं मेरे सपनों को सच करने वाले
मेरी छोटी बड़ी तकलीफों में सहारा देने वाले
मेरा हक़, मेरा गुरूर, मेरी प्रतिष्ठा, मेरी आत्मा
नहीं भुला सकता वो पापा हैं हमारे
उनके कन्धों पर बैठकर ही
ऊंचाई का अंदाजा लगाया था मैंने
अंधेरे रास्तों, कच्ची पगडंडियों पर
ऊँगली उनकी थम सहारा पाया था मैंने
कैसा होता है हीरो कहानियों का
पूछा था जब माँ से मैंने
मुस्कुरा कर उनकी आंखों का इशारा
पापा की तरफ़ पाया था मैंने॥

Thursday, June 18, 2009

बुढ़िया की व्यथा

परवरिश में भूल हुई क्या, न जाने
ढलती उम्र में बच्चे आँख दिखाते हैं
नाजों से पाला था जिनको, न जाने
क्यूँ अब सहारा बनने से कतराते हैं
निवाला अपने मुंह का खिलाया जिनको, न जाने
क्यूँ वे आज साथ खाने से घबराते हैं
सारा दर्द मेरे हिस्से और खुशियाँ उनके, न जाने
क्यूँ वे अब भी दर्द मेरे हिस्से ही छोड़ जाते हैं
उनकी पार्टी मानती है रोशनी में और मेरी साम अँधेरी कोठरी में, न जाने
क्यूँ वे हर बार मुझे ही शामिल करना भूल जाते हैं
उम्र के साथ कमजोर हुई मेरी सोच, न जाने
क्यूँ वे आज मुझे याद करने से डर जाते हैं

जीवन के आखिरी सफर में चेहरे सबके देखने की हसरत में, न जाने
क्यूँ मेरे अपने विदेश में बैठ जाते हैं
अपनी उखरती साँसों के समय साथ उनका चाहा मैंने, न जाने
क्यूँ वे काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं
उम्र भर सबको साथ लेकर चली मैं, न जाने
क्यूँ मेरी विदाई को वे गुमनामी में निपटाते हैं॥



Tuesday, May 26, 2009



ab hogi kavitaon ki bauchchar

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Tuesday, March 31, 2009

हमारे नेता

तन पर सफ़ेद कुरता मन पर ढेर सा मैला
ऐसे है हमारे नेता
कहते है जनसभा में चिल्लाकर वोट दो हमें
वोट दो हमें
हम दिख्लायेगे रास्ता तरक्की का विकास का
( अपनी )
वोट दो हमें हम दिलाएंगे आरक्षण
( और लड़ायेंगे तुम्हें )
वोट दो हमें और संसद भेजो हमको
(हम भूल जायेंगे तुमको) ॥

ज्ञानेंद्र कुमार
हिंदुस्तान, आगरा

Sunday, March 15, 2009

प्यार के नाम

अफसाना बनाने चला था मैं
उसको दीवाना बनाने चला था मैं
देख कर इक झलक उसकी
रूह_ऐ तमन्ना कह उठी
अब इबादत करूँ किसकी
खुदा की या उस चाँद की

दीवाना कर दिया उसकी इक नज़र ने
बेकरार कर दिया उसकी उसी नज़र ने
या खुदा मुझे कोई तो रास्ता बता दे
या वो रुख से नकाब उठा दे
या तू रुख से नकाब उठा दे

मेरी इक इल्तिजा मन मेरे मौला
मुझको मेरे महबूब का दीदार करा दे
दिखती है उसकी सूरत में तेरी सूरत
कुछ ऐसा कर मेरे मौला
उसके रुख से नकाब हटा दे

यदि देना है नज़राना तुझे मेरी बंदगी का
मेरी इबादत का मेरे रोजे का
मेरे मौला कर इशारा कुछ ऐसा
या तू देख मेरी ओर या नज़र उसकी मुझ पर कर दे

अब और किसी जन्नत का मुझे सबाब नहीं
उसके कदमों में मेरी जन्नत है मौला
बस इक आरजू है इल्तजा है
इक बार रुख से नकाब उठ जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए
मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए।।

Saturday, March 7, 2009

अबकी फागुन

अबकी फागुन खेरे होरी
ओ गोरी
पहना दे मोहें बैयन का हार
नहीं करिबे तोहसे सवाल
बात मान मोरी
अबकी फागुन खेरे होरी
ओ गोरी

अबकी फागुन भीगें संग संग
ई है हमरी पहरी होरी
भिगिये अंचला चोली तोहरी
अबकी फागुन खेरे होरी
ओ गोरी

नाचे संग संग अंगना माँ
उद्हैबे रंग तोहपे करिबे सीनाजोरी
गुलाल अबीर के संग माँ
नैनों के तोहरी दर्पण माँ करिबे ठिठोली
अबकी फागुन खेरे होरी
ओ गोरी

Thursday, February 19, 2009

फूल

चाहे मन्दिर में माला पहनाओ
चाहे मस्जिद में चादर चढाओ
नहीं दिखता मुझमें कोई भरम
मैं फूल हूँ नहीं देखता जात और धरम

गर हो तुम्हारे घर शादी
या किसी के यहाँ मातम
चाहे खुशिओं में सजाओ
चाहे मइयत पर चढाओ
मैं फूल हूँ मुझमें है संयम

रब की चाहत मुझसे
खुशी का इजहार मुझसे
दोस्ती की फरमाइश मुझसे
दिलों का इकरार मुझसे
मैं फूल हूँ मुझमे हैं कई रंग

दिलों के खेल का हथियार हूँ मैं
रूठने मनाने का आधार हूँ मैं
न इर्ष्या न जलन सिर्फ़ सादगी है मुझमे
इसीलिए गम का भी इलाज हूँ मैं
मैं इसी में खुश हूँ मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ॥

Tuesday, February 17, 2009

वो उम्मीद करते हैं मैं लिखूं तो उसमें गहराई हो

कैसे बतलाऊं मैं शुरू से शरू कर रहा हूँ॥

अकेला हूँ इस भीड़ भरी दुनिया में
पापा! मेरी ऊँगली पकड़ लो॥
आज चाहत हमारी नहीं कुबूल कर रहा ज़माना
हद तो तब हो गई जब तुमने भी मुंह मोड़ लिया

Friday, February 13, 2009

कैसे करूँ इज़हार

आंखों में हया उसकी

होंठों पर मुस्कान

याद दिलाती है उसकी

बेकरारी मेरी है

सताती है

तडपाती है

क्या करूँ मैं

कैसे करूँ इजहारे दिल

कैसे करूँ इकरारे प्यार

गुलाब दूँ

ख़त लिखूं

या मेरे खुदा

कोई और रास्ता बता दे॥

ज्ञानेंद्र

हिंदुस्तान, आगरा

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Sunday, February 8, 2009

सड़क

देखा है मैंने हर मंज़र हँसना, खेलना, इठलाना
तुम नन्हे क़दमों से दौड़ते हुए बाहर आती थी
तुम्हारा प्यारा सा चेहरा और वो मीठी शैतानियाँ
खिलखिलाती मुस्कान कैसे भूल जाऊं मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

कैसे भूल जाऊं मैं कल ही की तो बात थी जैसे
चलना सीखा था तुमने तो भागती थी मेरी ही तरफ़
वो नन्हे कदम बढ़ते थे मेरी ओर फिर घर की ओर
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

वो पहली बार जब मुझ पर गिरी थी तुम
साईकिल से अपनी नौ साल की उम्र में
चोट लगी थी तुमको, दर्द महसूस किया मैंने
आंसू देखे थे तुम्हारी आँखों से बहते मैंने
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


वो खेलना, वो दौड़ना, वो खिलखिलाना तेरा
ऊँगली छोड़ कर बाहर की ओर भागना तेरा
वो अल्हड वो मासूम सी चाहत तेरी
आइसक्रीम वाले को रोकना और घरवालों से झगड़ना तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

तुम्हारे पिता का दुलार, माँ का वो लाड
वो भाइयों से लड़ना तेरा फिर प्यार से मनाना भी तेरा
चलती साईकिल से गिरकर मुझ पर चोट खाना तेरा
वो खो-खो, वो कबड्डी, वो छुपाछुपी का खेल तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

जब खीचती थी रेखाएं सीने पे मेरे ईट से, चौक से, कोयले से
और खेलती थी खेल अपने ही ढंग के बड़े अजीब से
करती थी परेशान सभी को थोडी सी इमानदारी, थोडी बेईमानी से
लड़कपन की वो उम्र, अल्हड वो हँसी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

मैं ही तो रोज करती थी हिफाजत उसकी
स्कूल छोड़ना, घर लाना बन गई जिमेदारी मेरी
नन्हे क़दमों से चलकर आती थी वो मेरे पास
मुझसे मिलकर ही होती थी वो बस पर सवार
उसके जाने की बेकरारी और लौटने का इन्तजार
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


अब सायानी हो गई है बिटिया मेरी लेकिन नहीं गया लड़कपन
देर शाम तक साइकिल का पहिया घुमाकर गुदगुदाती है मुझे
अपने साथ दो और को साइकिल पर लाद दबाना चाहती है मुझे
कैसे बताऊँ कितना खुश हूँ मैं उन्ही नन्हे क़दमों की आहात यद् आती मुझे
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

कुछ दुखी हूँ मैं उम्र के साथ बदल रही सोच उसकी
नहीं है शायद अब कोई स्थान मेरा नजरों में उसकी
महसूस कर रही हूँ मैं उसके व्यवहार में यह बेरुखी
चलने लगी स्कूटी पे मेरी तरफ़ नहीं वो देखती
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


दिन कैसे बीतते हैं कैसे बताऊँ
वो जो थी नन्ही परी हो गई सायानी गुडिया
विवाह भी उसका हो गया तय खुश थी वो और मैं भी
उसकी डोली मुझ पर ही तो चल कर आएगी
नाच, गाना, आतिशबाजी और खुशियों का वो सेहरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

आज एक अजब अनुभव हो रहा है पता नहीं
वो नन्हे कदम जो कूदते थे मुझ पर आज हो रहे विदा
वो खुस है और आंखों में आंसू भी कैसी है ये घड़ी
मत करना तुम अहसास अपने अकेलेपण का
जहाँ तुम जाओगी मैं रहूँगा साथ तुम्हारे सदा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

डोली से उतरेंगे जब पैर तुम्हारे आगमन को मैं रहूंगी तुम्हारे
क्योंकि नहीं भुला सकती मैं उन नन्हे क़दमों की आहत को
तुम भले मत देखो मेरी ओर पर मैं नहीं भूल सकती
वो चंचलता, वो भोलापन, वो सच्ची दोस्ती तुम्हारी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


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Thursday, February 5, 2009

आज का हाल

अब कोई मुद्दा नही सिर्फ़ राजनीति है
कोई सिद्धांत विचारधारा नहीं
सिर्फ़ राजनीति है
लगाते रहे आरोप मुस्लिम नेता
विवादित ढाचा ढहाया किसने
आज कल्याण मुलायम साथ है
सिर्फ़ राजनीति है
नैतिक नहीं अवसरवादी है दोस्ती इनकी
दे रहे जनता को धोखा
सिर्फ़ राजनीति है
श्रीलंका ने माँगा भारत से सहयोग
प्रभाकरन को पकड़ने के लिए
हमने दिया हवाला अंतर्राष्ट्रीय दबाव का
सिर्फ़ राजनीति है
अब श्रीलंका के पास पहुच गए प्रणब
जताने लगे हक़ सौप दो प्रभाकन हमें
उसने की है हमारे नेता की हत्या
सिर्फ़ राजनीति है
करूणानिधि पर लगाया आरोप
राजीव की हत्या के मददगारों की मदद का
आज कांग्रेस करूणानिधि साथ हैं
सिर्फ़ राजनीति है
प्रज्ञा ठाकुर बंद है मकोका में जेल में
आडवानी चिल्ला रहे हन्दुत्य के खेल में
दब गयी चीखें जिनकी धमाकों के शोर में
जनता दुखी तस्त है नेता खूब मस्त हैं
सिर्फ़ राजनीति है
आ गया फिर मौसम चुनावों का
दिखेगा शोर इसमें विकास के दावों का
सभी पार्टियाँ बजायेगी अपना डंका
लोकलुभावन वादे नारे गूजेंगे
सिर्फ़ राजनीति है
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Wednesday, February 4, 2009

वसंत आ गया

कैसे छिपोगे
कैसे छिपापाओगे
अपने आने का संदेश
तुम्हारी चुलबुली शरारतें
इशारा कर देती हैं
तुम्हारे आगमन का
लाख छिपोगे फिर भी
गगन करेगा चुगली
भवरे, तितलियाँ और कोपलें
करेंगी तुम्हारा स्वागत
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
गाव की पगडंडियों से
चली सरिता को
रोक पाओगे
पीली ओध्रनी में
इठलाती हवाओं को
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
मधुर मिलन की प्यास
जो कराएगी तुम्हारा अहसास
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
पत्तियों को चूमती
ओस को
मुंडेर पर बैठे
पंछियों के शोर को
जो गुनगुनायेंगे
प्रिया के संदेश को
हो जाओ सचेत
ऋतुराज आ गया
ऋतुराज आ गया ऋतुराज आ गया
वसंत छा गया

दीक्षांत तिवारी हिंदुस्तान, आगरा मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम