Thursday, February 19, 2009

फूल

चाहे मन्दिर में माला पहनाओ
चाहे मस्जिद में चादर चढाओ
नहीं दिखता मुझमें कोई भरम
मैं फूल हूँ नहीं देखता जात और धरम

गर हो तुम्हारे घर शादी
या किसी के यहाँ मातम
चाहे खुशिओं में सजाओ
चाहे मइयत पर चढाओ
मैं फूल हूँ मुझमें है संयम

रब की चाहत मुझसे
खुशी का इजहार मुझसे
दोस्ती की फरमाइश मुझसे
दिलों का इकरार मुझसे
मैं फूल हूँ मुझमे हैं कई रंग

दिलों के खेल का हथियार हूँ मैं
रूठने मनाने का आधार हूँ मैं
न इर्ष्या न जलन सिर्फ़ सादगी है मुझमे
इसीलिए गम का भी इलाज हूँ मैं
मैं इसी में खुश हूँ मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ॥

Tuesday, February 17, 2009

वो उम्मीद करते हैं मैं लिखूं तो उसमें गहराई हो

कैसे बतलाऊं मैं शुरू से शरू कर रहा हूँ॥

अकेला हूँ इस भीड़ भरी दुनिया में
पापा! मेरी ऊँगली पकड़ लो॥
आज चाहत हमारी नहीं कुबूल कर रहा ज़माना
हद तो तब हो गई जब तुमने भी मुंह मोड़ लिया

Friday, February 13, 2009

कैसे करूँ इज़हार

आंखों में हया उसकी

होंठों पर मुस्कान

याद दिलाती है उसकी

बेकरारी मेरी है

सताती है

तडपाती है

क्या करूँ मैं

कैसे करूँ इजहारे दिल

कैसे करूँ इकरारे प्यार

गुलाब दूँ

ख़त लिखूं

या मेरे खुदा

कोई और रास्ता बता दे॥

ज्ञानेंद्र

हिंदुस्तान, आगरा

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Sunday, February 8, 2009

सड़क

देखा है मैंने हर मंज़र हँसना, खेलना, इठलाना
तुम नन्हे क़दमों से दौड़ते हुए बाहर आती थी
तुम्हारा प्यारा सा चेहरा और वो मीठी शैतानियाँ
खिलखिलाती मुस्कान कैसे भूल जाऊं मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

कैसे भूल जाऊं मैं कल ही की तो बात थी जैसे
चलना सीखा था तुमने तो भागती थी मेरी ही तरफ़
वो नन्हे कदम बढ़ते थे मेरी ओर फिर घर की ओर
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

वो पहली बार जब मुझ पर गिरी थी तुम
साईकिल से अपनी नौ साल की उम्र में
चोट लगी थी तुमको, दर्द महसूस किया मैंने
आंसू देखे थे तुम्हारी आँखों से बहते मैंने
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


वो खेलना, वो दौड़ना, वो खिलखिलाना तेरा
ऊँगली छोड़ कर बाहर की ओर भागना तेरा
वो अल्हड वो मासूम सी चाहत तेरी
आइसक्रीम वाले को रोकना और घरवालों से झगड़ना तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

तुम्हारे पिता का दुलार, माँ का वो लाड
वो भाइयों से लड़ना तेरा फिर प्यार से मनाना भी तेरा
चलती साईकिल से गिरकर मुझ पर चोट खाना तेरा
वो खो-खो, वो कबड्डी, वो छुपाछुपी का खेल तेरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

जब खीचती थी रेखाएं सीने पे मेरे ईट से, चौक से, कोयले से
और खेलती थी खेल अपने ही ढंग के बड़े अजीब से
करती थी परेशान सभी को थोडी सी इमानदारी, थोडी बेईमानी से
लड़कपन की वो उम्र, अल्हड वो हँसी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

मैं ही तो रोज करती थी हिफाजत उसकी
स्कूल छोड़ना, घर लाना बन गई जिमेदारी मेरी
नन्हे क़दमों से चलकर आती थी वो मेरे पास
मुझसे मिलकर ही होती थी वो बस पर सवार
उसके जाने की बेकरारी और लौटने का इन्तजार
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


अब सायानी हो गई है बिटिया मेरी लेकिन नहीं गया लड़कपन
देर शाम तक साइकिल का पहिया घुमाकर गुदगुदाती है मुझे
अपने साथ दो और को साइकिल पर लाद दबाना चाहती है मुझे
कैसे बताऊँ कितना खुश हूँ मैं उन्ही नन्हे क़दमों की आहात यद् आती मुझे
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

कुछ दुखी हूँ मैं उम्र के साथ बदल रही सोच उसकी
नहीं है शायद अब कोई स्थान मेरा नजरों में उसकी
महसूस कर रही हूँ मैं उसके व्यवहार में यह बेरुखी
चलने लगी स्कूटी पे मेरी तरफ़ नहीं वो देखती
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


दिन कैसे बीतते हैं कैसे बताऊँ
वो जो थी नन्ही परी हो गई सायानी गुडिया
विवाह भी उसका हो गया तय खुश थी वो और मैं भी
उसकी डोली मुझ पर ही तो चल कर आएगी
नाच, गाना, आतिशबाजी और खुशियों का वो सेहरा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

आज एक अजब अनुभव हो रहा है पता नहीं
वो नन्हे कदम जो कूदते थे मुझ पर आज हो रहे विदा
वो खुस है और आंखों में आंसू भी कैसी है ये घड़ी
मत करना तुम अहसास अपने अकेलेपण का
जहाँ तुम जाओगी मैं रहूँगा साथ तुम्हारे सदा
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की

डोली से उतरेंगे जब पैर तुम्हारे आगमन को मैं रहूंगी तुम्हारे
क्योंकि नहीं भुला सकती मैं उन नन्हे क़दमों की आहत को
तुम भले मत देखो मेरी ओर पर मैं नहीं भूल सकती
वो चंचलता, वो भोलापन, वो सच्ची दोस्ती तुम्हारी
कैसे भूल जाऊँ मैं
गवाह हूँ मैं तेरी खुशियों तेरी ग़मों की


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Thursday, February 5, 2009

आज का हाल

अब कोई मुद्दा नही सिर्फ़ राजनीति है
कोई सिद्धांत विचारधारा नहीं
सिर्फ़ राजनीति है
लगाते रहे आरोप मुस्लिम नेता
विवादित ढाचा ढहाया किसने
आज कल्याण मुलायम साथ है
सिर्फ़ राजनीति है
नैतिक नहीं अवसरवादी है दोस्ती इनकी
दे रहे जनता को धोखा
सिर्फ़ राजनीति है
श्रीलंका ने माँगा भारत से सहयोग
प्रभाकरन को पकड़ने के लिए
हमने दिया हवाला अंतर्राष्ट्रीय दबाव का
सिर्फ़ राजनीति है
अब श्रीलंका के पास पहुच गए प्रणब
जताने लगे हक़ सौप दो प्रभाकन हमें
उसने की है हमारे नेता की हत्या
सिर्फ़ राजनीति है
करूणानिधि पर लगाया आरोप
राजीव की हत्या के मददगारों की मदद का
आज कांग्रेस करूणानिधि साथ हैं
सिर्फ़ राजनीति है
प्रज्ञा ठाकुर बंद है मकोका में जेल में
आडवानी चिल्ला रहे हन्दुत्य के खेल में
दब गयी चीखें जिनकी धमाकों के शोर में
जनता दुखी तस्त है नेता खूब मस्त हैं
सिर्फ़ राजनीति है
आ गया फिर मौसम चुनावों का
दिखेगा शोर इसमें विकास के दावों का
सभी पार्टियाँ बजायेगी अपना डंका
लोकलुभावन वादे नारे गूजेंगे
सिर्फ़ राजनीति है
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Wednesday, February 4, 2009

वसंत आ गया

कैसे छिपोगे
कैसे छिपापाओगे
अपने आने का संदेश
तुम्हारी चुलबुली शरारतें
इशारा कर देती हैं
तुम्हारे आगमन का
लाख छिपोगे फिर भी
गगन करेगा चुगली
भवरे, तितलियाँ और कोपलें
करेंगी तुम्हारा स्वागत
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
गाव की पगडंडियों से
चली सरिता को
रोक पाओगे
पीली ओध्रनी में
इठलाती हवाओं को
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
मधुर मिलन की प्यास
जो कराएगी तुम्हारा अहसास
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
पत्तियों को चूमती
ओस को
मुंडेर पर बैठे
पंछियों के शोर को
जो गुनगुनायेंगे
प्रिया के संदेश को
हो जाओ सचेत
ऋतुराज आ गया
ऋतुराज आ गया ऋतुराज आ गया
वसंत छा गया

दीक्षांत तिवारी हिंदुस्तान, आगरा मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम