Friday, February 13, 2009

कैसे करूँ इज़हार

आंखों में हया उसकी

होंठों पर मुस्कान

याद दिलाती है उसकी

बेकरारी मेरी है

सताती है

तडपाती है

क्या करूँ मैं

कैसे करूँ इजहारे दिल

कैसे करूँ इकरारे प्यार

गुलाब दूँ

ख़त लिखूं

या मेरे खुदा

कोई और रास्ता बता दे॥

ज्ञानेंद्र

हिंदुस्तान, आगरा

rastey2manzil.blogspot.com

1 comment:

musaffir said...

beta lagta hai jammu ke pyar ka bukhar abhi utra nahi hai...
achcha likhne laga hai.. likhta rah padh kar achcha lagta hai..

kunal