पियक्कड़ों की हर नुक्कड़ में लगेंगी महफिलें
लड़खड़ाते कदमों का नाली ही मुकाम होगा।।
नया साल शुरू होने वाला है। उसका सुरूर छाने लगा है। लोगों ने रात का कोटा एक रात पहले ही रख लिया है। पुलिस कहती है दस बजे के बाद पियोगे तो पेलेंगे। हम कहते हैं रोक के दिखाओ। साले हम तो जरूर पिएंगे। कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
अबे खुशी तो असली हम ही मनाएंगे। तुम, पालक खाने वालों क्या जानो नए साल की खुशी। पुराने साल भी आलू खाई थी और नए साल में भी आलू ही खाओगे। कभी पनीर का टुकड़ा मुंह में गिर गया तो खुशी का लम्हा मान लिया। अबे हमसे सीखो भले ही भीख मांगनी पड़े, लेकिन चिली पनीर से नीचे समझौता नहीं करते हैं। तुम साले क्या जानो मुर्गे और लेग पीस का जायका। मछली, झोर और रायता। अण्डा करी और मक्खन का तड़का। आलू खाने वाले क्या समझेंगे इसका मर्म। ऐसों को तो भगवान ने भी नहीं छोड़ा इसीलिये तो यमराज रूपी महंगाई को इनके पीछे छोड़ दिया। अब बेटा दाल खा के दिखाओ। हम भी देखें। थाली में कितनी सब्जी ले रहे हो जरा बताओ। विटामिन की कमी हो रही है। आयरन पूरा नहीं मिल रहा है। हड्डियां आवाज करने लगी हैं। जरा सी हवा चली नहीं कि नजला हो गया। अब सर्दी तीन दिन से पहले थोड़े ही जाएगी। तब तक तो उसे परिवार में बांट दोगे क्योंकि कसम खाई है कि रूमाल मुंह में नहीं रखोगे।
पुराना साल कई वादों, इरादों में ही बीत गया। अब बेटा नए साल में क्या करना है। पापा कसम सच बता रहे हैं सुरीली का गाना तो नहीं सुनेंगे। कुछ कमाल ही करेंगे। अबे कहने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना भी पड़ेगा। वरना नया साल भी निकल जाएगा और पता भी नहीं चल पाएगा। और बेटा सच तो ये ही है कि अभी पालक खा लो वरना ’नशीला पानी’ लीवर खराब कर देगा और इसी पालक, मूंग से ही जीवन जीना पड़ेगा। तब सालों अफसोस करोगे कि ’पानी’ क्यों पिया, पालक ही पी लेते। चलो, समझो तो भला नहीं तो रामभला। मैं भी कोशिश ही कर सकता हूं। तुम्हारे ही शब्दों में प्रयास किया है। नहीं तो कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
नया साल सभी के लिए मंगल होःःःःःःःःःःःःःः
हार्दिक शुभकामनाएंःःःःःःःःःःःःःःः
-ज्ञानेन्द्र
Wednesday, December 30, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
kya baat hai..maja aa gaya..sachai bayan kar di aapne :)
Post a Comment